आखिर क्यों परायी हैं बेटिया

आखिर क्यों परायी हैं बेटिया.?

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बेटी जब शादी के मंडप से ससुराल जाती है तब पराई नहीं लगती मगर जब वह मायके आकर हाथ मुंह धोने के बाद सामने टंगे टाविल के बजाय अपने बैग से छोटे से रुमाल से मुंह पौंछती है , तब वह पराई लगती है.

जब वह रसोई के दरवाजे पर अपरिचित सी खड़ी हो जाती है , तब वह पराई लगती है.

जब वह पानी के गिलास के लिए इधर उधर आँखें घुमाती है , तब वह पराई लगती है.

जब वह पूछती है वाशिंग मशीन चलाऊँ क्या तब वह पराई लगती है.

जब टेबल पर खाना लगने के बाद भी बर्तन खोल कर नहीं देखती तब वह पराई लगती है.

जब पैसे गिनते समय अपनी नजरें चुराती है तब वह पराई लगती है.

जब बात बात पर अनावश्यक ठहाके लगाकर खुश होने का नाटक करती है तब वह पराई लगती है.....

और लौटते समय 'अब कब आएगी' के जवाब में 'देखो कब आना होता है' यह जवाब देती है, तब हमेशा के लिए पराई हो गई ऐसे लगती है.

लेकिन गाड़ी में बैठने के बाद जब वह चुपके से 

अपनी आखें छुपा के सुखाने की कोशिश करती । तो वह परायापन एक झटके में बह जाता तब वो पराई सी लगती,

नहीं चाहिए हिस्सा भइया मेरा मायका सजाए रखना ,

कुछ ना देना मुझको 

बस प्यार बनाए रखना ,

पापा के इस घर में 

मेरी याद बसाए रखना ,

बच्चों के मन में मेरामान बनाए रखना ,

बेटी हूँ सदा इस घर की

ये सम्मान सजाये रखना।।


                       ✍️ SK Singh"Satya"


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